Sidhi : भारत में मध्यप्रदेश राज्य के आदिवासी जिलों में से एक हैं सीधी जोकि रीवा जिला के संभाग का हिस्सा होने के साथ में यह जिला का मुख्यालय भी हैं। सीधी जिला में इतिहासिक, प्राकृतिक और संस्कृतिक इतिहास का अपार भंडार हैं। यह प्राकृतिक संसाधनों के लिए भी प्रसिद्ध हैं सीधी जिला राज्य की उत्तर-पूर्वी सीमा को जोड़ता है यहाँ से सोन नदी अपनी कलकल की आवाज के साथ बहती हैं।
Sidhi : संजय राष्ट्रीय उद्यान (संजय-डुबरी टाइगर रिजर्व)
संजय-दुबरी राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व की स्थापना 1975 में जिले के विविध वन क्षेत्र के संरक्षण की दृष्टि से की गई थी। यह बारहमासी वन क्षेत्र 152 पक्षी प्रजातियों, 32 स्तनधारियों, 11 सरीसृपों, 3 उभयचरों और 34 मछली प्रजातियों सहित विभिन्न प्रजातियों का निवास स्थान है, जिसमें कई प्राणियों, विशेष रूप से बाघों के लिए एक अभयारण्य होने पर विशेष जोर दिया गया है। ‘मोहन’ नाम का पहला सफेद बाघ इसी क्षेत्र में खोजा गया था।
बाघों के अलावा, पार्क विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों का घर है, जैसे स्लॉथ भालू, चित्तीदार हिरण, सांभर हिरण, चीतल, नीलगाय, चिंकारा, स्लॉथ भालू, भारतीय बाइसन, जंगली बिल्ली, लकड़बग्घा, सियार, लोमड़ी, भेड़िया, अजगर, चार सींग वाला मृग, और भौंकने वाला हिरण।
संजय राष्ट्रीय उद्यान, जो संजय-दुबरी टाइगर रिजर्व का हिस्सा है, वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है। टाइगर रिज़र्व में संजय राष्ट्रीय उद्यान और दुबारी वन्यजीव अभयारण्य दोनों शामिल हैं, जो सीधे जिले में स्थित 831 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को कवर करता है। अपने विशाल विस्तार और समृद्ध जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध, इस रिज़र्व में बांस, साल और मिश्रित वनों का मिश्रण है।
संजय-दुबरी राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व इस क्षेत्र में अद्वितीय वनस्पतियों और जीवों की रक्षा और संरक्षण की प्रतिबद्धता के प्रमाण के रूप में खड़े हैं, जो इसे एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक संपत्ति बनाते हैं। और पढ़े…
बगदरा अभ्यारण्य (Sidhi)
बगदरा वन्यजीव अभयारण्य, यह काले हिरणों की क्रीड़ास्थली जो कैमोर पहाड़ियों से घिरा और अधिकांश जंगल विंध्य पर्वतमाला के साथ-साथ मैदानी इलाकों में प्रमुख बाघ आवास क्षेत्र लगभग 478 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी स्थापना 1978 में मध्य प्रदेश के सीधी ज़िले हुई थी और यह अभयारण्य यह शुष्क पर्णपाती मिश्रित वन से घिरा हुआ है। इस अभयारण्य में पौधों और जंगली जानवरों की सौ से अधिक प्रजातियों की मेज़बानी के लिए जाना जाता है।
कृषि क्षेत्रों और घास के मैदानों में काले हिरणों के मुक्त झुंड, नीलगाय और कभी-कभी चिंकारा के बड़े समूह आगंतुकों का मनोरंजन करते हैं। और पढ़ें…
सोन नदी (Sidhi)
सोन नदी, मध्य भारत के सीधी ज़िले से होकर बहने वाली एक प्रसिद्ध और बारहमासी नदी है, जो गंगा नदी की प्रमुख दक्षिणी सहायक नदी है। यह यमुना नदी के बाद गंगा नदी की दक्षिणी उपनदियों में सबसे बड़ी दूसरी नदी है। सोन नदी, मध्य प्रदेश के अनूपपुर ज़िले में अमरकंटक के पास से निकलती है, जिसे सोनमुड़ा या सोनभद्र शिला और हिरण्यवाह के नाम से भी जाना जाता है। सोन नदी नदी मानपुर से उत्तर की ओर बहती है और फिर उत्तर पूर्व की ओर मुड़ जाती है जो कैमूर रेंज से होकर गुज़रती है. यह नदी 784 किलोमीटर (487 मील) की दूरी तय करती है।
यह उत्तर प्रदेश, झारखंड के पहाड़ियों से गुज़रती हुई पटना के पास जाकर गंगा नदी में मिल जाती है। यह नदी झारखंड के उत्तरी-पश्चिमी छोर पर सीमा का निर्माण करती है. यह पलामू की उत्तरी सीमा बनाती हुई बहती है। सोन नदी, मध्य प्रदेश की तीसरी सबसे लंबी नदी और यह यमुना नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है।
सोन नदी के 161 किलोमीटर, बनास नदी के 23 किलोमीटर, और गोपद नदी के 26 किलोमीटर क्षेत्र को मिलाकर 1981 में सोन घड़ियाल अभयारण्य बनाया गया था। यह अभयारण्य प्रोजेक्ट क्रोकोडाइल के तहत घड़ियाल संरक्षण और उनकी आबादी बढ़ाने के लिए बनाया गया था।
सोन घड़ियाल अभयारण्य (Sidhi)
सोन घड़ियाल अभयारण्य जिसका उद्देश्य घड़ियाल संरक्षण और उनकी जनसंख्या में वृद्धि को बढ़ावा देना है, यह एक महत्वपूर्ण पहल है। सोन नदी के क्षेत्र में स्थित इस अभयारण्य को 1981 में 161 किमी क्षेत्र में घोषित किया गया था, जिसमें सम्मिलित हैं 23 किमी बनास नदी और 26 किमी गोपद नदी के क्षेत्र।
यहां के रेतीले पर्यावास, जैसे कि रेतीले तट और नदी द्वीप, एक संगीत स्वरूप हैं, जो अनेक संकटग्रस्त जीवों के लिए एक महत्वपूर्ण आश्रय स्थान प्रदान करते हैं। इसमें घड़ियाल, भारतीय नर्म खोल कछुए (Chitra Indica), और भारतीय स्किमर (Rynchops albicollis) जैसे विभिन्न प्रजातियों को सुरक्षित करने के लिए स्थान हैं। इस अभयारण्य में लगभग 101 पक्षियों की प्रजातियां दर्ज हैं, जो इसे जलीय और पक्षी जैव विविधता से समृद्धि देने वाला बनाती हैं। और पढ़ें …
पारसली रेस्ट हाउस (Sidhi)
परसिली रिसॉर्ट, जो मझौली तहसील के सीधे मुख्यालय से 60.0 किमी (37.3 मील) दूर है, एक अद्वितीय स्थान है। जिले के मझौली विकासखंड में स्थित इस रिसॉर्ट ने बनास नदी के किनारे पर एक सुंदर रेतीले क्षेत्र को अपने आप में समाहित किया है। यह संजय राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व के प्रारंभिक स्थान पर स्थित है और इसे बालू तट पर नंगे पैरों से चलने, सफारी, और पक्षी दर्शन के लिए प्रसिद्ध बना दिया है। यह रिसॉर्ट मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम द्वारा संचालित होता है और इसे आप ऑनलाइन बुक करके एक आनंदमय और स्मरणीय अनुभव के लिए चुना जा सकता है।
मझौली तहसील (Sidhi)
मझौली तहसील, सीधी ज़िले में है. सीधी ज़िले का प्राकृतिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक महत्व है।
मझौली तहसील में मछली पकड़ते समय जाल में फसी कल्चुरी काल की रहस्यमयी काली प्रतिमा ?
वरचर आश्रम (Sidhi)
सीधी जिला मुख्यालय से 60 किमी दूर स्थित परसिली का पर्यटक रिजॉर्ट एक अद्वितीय स्थान है जो खूबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य के बीच स्थित है। यहां बहुत सारे लकड़ी से बने लग्जरी कॉटेज भी हैं, जिन्हें आज भी आगे बढ़कर बुक किया जा सकता है। परसिली रिजॉर्ट, जो घने जंगलों के बीच स्थित है, से बासी बनास नदी बहती है, जो गर्मी के दिनों में पर्यटकों को पैदल पार करने का अवसर देती है। यहां कुछ दूर आगे बनास और सोन नदी का संगम है।
एक पुल को काटकर जब आप आगे बढ़ते हैं, तो वहां एक टीले पर, महाराजा रीवा के समय का एक भवन है, जिसे शिकारगाह कहा जाता है। महाराजा रीवा मार्तंड सिंह इस क्षेत्र में शिकार के लिए आते थे, और इसी शिकारगाह में रुकते थे। विशेष रूप से कहा जाता है कि उन्होंने इसी क्षेत्र में सबसे पहला सफेद शेर का बच्चा देखा था, जिस पर वह मोहित हो गए थे। उन्होंने इसे पहली बार तो पकड़ा नहीं, किंतु अगली बार उसे घेरा लगाकर पकड़ लिया और अपने महल में ले आए, जिसका नाम राजू रखा गया। आज पूरे विश्व में जो भी सफेद शेर हैं, वे सभी उसी राजू के वंशज माने जाते हैं।
घोघरा देवी मंदिर (Sidhi)
घोघरा देवी मंदिर, घोघरा गाँव के सीधी जिले में स्थित है, जो सीधी शहर से 16 किलोमीटर की दूरी पर है। इस मंदिर को हरित-भरित जंगलों से घेरा गया है और आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य अद्वितीय रूप से प्रस्तुत करता है। सीधी जिला मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित है और इसकी सीमा उत्तर प्रदेश राज्य से लगती है। यह जिला विंध्य पर्वतमाला में स्थित है और अपनी प्राकृतिक सौंदर्य और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है।
घोघरा देवी मंदिर, सीधी जिले के हृदय में सजीव हृदय है। यहां घोघरा देवी हमारी सुरक्षा की देवी हैं, जिनका मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर बसा है, जहां से हमें आसपास की सुंदरता की अनगिनत राहें दिखती हैं। लोकतंत्र के इस अद्वितीय मंदिर की नींवें लगभग 500 साल पहले स्थानीय राजा ने रखी थीं, जिसे आज भी यहां की अनूठी वास्तुकला और सुंदर नक्काशी से याद किया जाता है।
मंदिर की प्रतिमा नहीं, बल्कि यहां का वातावरण ही है जो हर भक्त को आकर्षित करता है। विशेषकर, नवरात्रि के त्योहार के दिनों में इस मंदिर में भक्ति का उत्साह होता है, जो यहां एक साथ मिलकर मनाते हैं। मंदिर का दर्शन करने वाले पर्यटक भी यहां आते हैं, न केवल इसकी वास्तुकला की प्रशंसा करने, बल्कि आसपास की प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने।
घोघरा देवी मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जो बुजुर्ग या शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए थोड़ी चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं, लेकिन यह एक पूर्णता का अहसास कराती है। यहां आने वाले हर पथिक को एक शांत, ध्यानपूर्ण और आत्मनिरीक्षण का अद्वितीय अनुभव होता है।
बीरबल का जन्म स्थान (अकबर का नवरत्न) (Sidhi)
महेश दास, जिन्हें बीरबल के नाम से जाना जाता है, का जन्म 1528 में हुआ था, कल्पी के नजदीक किसी गाँव में। आज उनका जन्मस्थान भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार, उनका जन्मगाँव यमुना नदी के तट पर स्थित टिकवनपुर था। उनके पिता का नाम गंगा दास और माता का नाम अनभा दवितो था। वे हिन्दू ब्राह्मण परिवार से थे और इस परिवार में पहले भी कविताएँ और साहित्य लिखने का संस्कार रहा है, उनके तीसरे बेटे के रूप में भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध पात्रों में से एक, महेश दास, जिन्हें ‘बीरबल’ के नाम से जाना जाता है, एक अद्वितीय बौद्धिक ज्ञान संम्पन्न व्यक्ति थे
चमत्कारों से भरा है मां शारदा का यह शक्तिपीठ मैहर!
चंद्रेह शैव मंदिर व मठ (Sidhi)
रामपुर नैकिन जिले में स्थित चंद्रेह गाँव में स्थित 972 ई. में बने प्राचीन शैव मंदिर और मठ का एक अनूठा परिचय है। यह मंदिर चेदि शासकों के गुरु, प्रबोध शिव को समर्पित है, जो मत्त-मयूर नामक प्रसिद्ध शैव संप्रदाय से जुड़े थे। इसे साधना और शैव सिद्धांत के प्रचार के लिए स्थापित किया गया था। मंदिर से जुड़ा हुआ एक मठ, जो बालुका पत्थर से बना है, में इसके निर्माण के समय से संबंधित दो प्राचीन संस्कृत शिलालेख हैं।
रामपुर नैकिन के चंद्रेह गाँव में, बालुका पत्थरों से बना मठ।
बसा है एक प्राचीन शैव मंदिर व मठ शिवपुरी के सन्निधान।।
साधना और शैव सिद्धांत, अत्यंत पवित्र और आत्मीय है।
इस संप्रदाय के अनुयायियों ने, स्थापित किए हैं कई और मंदिर।।
चेदि शासकों के आदर्श गुरु,प्रबोध शिव की धरोहर में।
यहाँ बसा है मत्त-मयूर संप्रदाय का अद्वितीय वातावरण।।
चंद्रेह शैव मंदिर, सोन और बनास नदी के संगम में अद्वितीय धार्मिक स्थल साकार हैं।
आज भी बचाव किया जा रहा है, भारतीय पुरातात्विक सर्वे द्वारा संबोधित है यह स्थान।।
यह मंदिर एक आध्यात्मिक यात्रा का आमंत्रण है।
जिसमें है सुकून, शांति और प्राचीनता का आभास।।
इस संप्रदाय ने अनेक मंदिर स्थापित किए हैं, जिनमें कदवाहा मंदिर, अशोकनगर और सुरवाया मंदिर, शिवपुरी प्रमुख हैं। चंद्रेह शैव मंदिर सोन और बनास नदी के संगम के निकट स्थित है और वर्तमान में इसे भारतीय पुरातात्विक सर्वे द्वारा संरक्षित किया गया है। यह मंदिर पर्सिली रिसॉर्ट से लगभग 60 किमी की दूरी पर स्थित है।
“धर्मेंद्र सिंह आर्यन गो में सीनियर डिजिटल कंटेंट राइटर कार्यरत है। उम्र 35 साल है, शैक्षिणिक योग्यता दर्शनशास्त्र में एम.फिल है, मुझे किताबें पढ़ने, लेखन और यात्रा करने का शौक है, मेरा आहार शुद्ध शाकाहारी भोजन है। मुझे भारत के छिपे हुए पर्यटक स्थलों की खोज करने और उन पर लेख लिखने का गहरा जुनून है।
पिछले 18 वर्षों से, मैंने एक ट्रैवल गाइड के रूप में अमूल्य अनुभव एकत्र किए हैं, जिन्हें मैं अब अपने ब्लॉग के माध्यम से गर्व से साझा करता हूं। मेरा लक्ष्य आपको भारत के सबसे आकर्षक यात्रा स्थलों के बारे में आकर्षक और व्यावहारिक जानकारी प्रदान करना है, साथ ही अन्य उपयोगी ज्ञान जो आपकी यात्रा को बेहतर बनाता है।
मैंने एक ब्लॉगर, YouTuber और डिजिटल मार्केटर के रूप में अपनी भूमिकाएँ निभाई हैं। मैं प्रकृति की गोद में बसे एक छोटे से गाँव में अपने शांतिपूर्ण जीवन से प्रेरणा लेता हूँ। मेरी यात्रा दृढ़ता और समर्पण की रही है, क्योंकि मैंने अपने सपनों को वास्तविकता में बदलने के लिए कड़ी मेहनत की है। अपने ब्लॉग के माध्यम से, मैं अपने द्वारा अर्जित ज्ञान को साझा करना चाहता हूँ और दूसरों को रोमांचकारी यात्रा करने के लिए प्रेरित करना चाहता हूँ।“